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2022 उत्तर प्रदेश चुनाव एवम् जाट

  • लेखक की तस्वीर: Shashi Prabha
    Shashi Prabha
  • 2 फ़र॰ 2022
  • 8 मिनट पठन

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2013 में उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के शासन के दौरान मुजफ्फरनगर में हुए दंगों में जब जाट जेल भेजे गए तब वह केवल जाट था लेकिन जेल से बाहर निकलते समय वह हिंदू था क्योंकि जेल में रहने के दौरान उसने मनन चिंतन किया कि वह अपने ग्रामीण आंचल में हिंदू मुस्लिम दोनों समुदायों के साथ रहते हुए वह मुसलमानों के साथ भाई तुल्य व्यवहार करता रहा उसमें धर्म कहीं शामिल नहीं हुआ ,कहीं कोई दुराग्रह नहीं रहा धर्मों को लेकर ।


लेकिन वही मुस्लिम समुदाय की सोच संकीर्ण रही , इसका प्रतिबिंब जाट समुदाय की लड़कियों के साथ हुई छेड़छाड़ में दिखाई देता है । उत्तर प्रदेश में हिंदू मुस्लिम संप्रदायों के मध्य कई बार दंगे हुए लेकिन ज्यादातर ये दंगे अर्बन एरिया तक सीमित रहे । गांव इन की गिरफ्त में नहीं आए लेकिन उत्तर प्रदेश में समाजवादी सरकार ने अपने तुच्छ राजनीतिक स्वार्थ के लिए मुस्लिम समुदाय के लिए एक ऐसा कुत्सित वातावरण तैयार किया कि मुस्लिम समुदाय कुछ भी गैर जिम्मेदाराना हरकत करें गैर मुस्लिम समुदाय के साथ आपका कुछ बिगड़ने वाला नहीं है । समाजवादी पार्टी आपके साथ है ।

समाजवादी पार्टी की इस सोच ने मुस्लिम समुदाय को बेलगाम कर दिया । जाट लड़कियों का स्कूल आते जाते समय उन पर फब्तियां कसना ,उनका पीछा करना ,मुस्लिम समुदाय की प्रवृत्ति में शामिल हो गया । परिणाम स्वरूप जाटों की लड़कियों का स्कूल आना जाना बंद हो गया । यह सुनियोजित तरीके से हुआ । कैराना में व्यापारिक कम्युनिटी को ही मुस्लिमों के द्वारा कैराना छोड़ने पर बाध्य किया गया ।


जाट के स्वभाव में शामिल रहा है कि वह सिर्फ जाट है । वह हिंदू या मुसलमान नहीं है । वह मेहनत कश, ईमानदार कौम है । ग्रामीण आंचल में शांति एवं सौहार्द पूर्ण वातावरण बनाए रखना उसका स्वभाव है ।


जाट बड़ा भोला होता है । उसमें चालाकी , धूर्तता एवम् मक्कारी नहीं होती है । वह बिना किंतु परंतु के लोगों की बातों से सहमत हो जाता है । और उनके स्वार्थ पूर्ण बुने जाल में फंस भी जाता है ।

क्योंकि जाट का प्रमुख धंधा कृषि है यही उसके जीविकोपार्जन का महत्वपूर्ण आधार है उसकी कर्मठता बहादुरी उसको फौज में भी ले आई लेकिन खेती उसने नहीं छोड़ी । उसके परिवार के अन्य सदस्य खेती-बाड़ी करते रहे ।


उत्तर प्रदेश के आम जाटों का राजनीति के खेल से कोई वास्ता नहीं रहा । उसका उद्देश्य तो सिर्फ इतना रहा है कि उसकी मेहनत व प्रभु कृपा उसको बस इतना दे दे कि वह बहन बेटियों को साक्षर कर सके या आठवीं ,दसवीं या अधिक से अधिक 12वीं कक्षा तक पढ़ा सके ,उनकी शादी कर सके । अपने बेटे को पढ़ा कर फौज में जवान बना सके । इससे ज्यादा का सपना सामान्य जाट ,जो आम किसान भी है ,नहीं देखता है ।


पश्चिमी उत्तर प्रदेश को जाटलैंड भी कहते हैं । उत्तर प्रदेश के ये पश्चिमी जिले जाट प्रभाव वाले हैं -मेरठ, मथुरा, अलीगढ़ ,बुलंदशहर ,मुजफ्फरनगर ,आगरा, बिजनौर, मुरादाबाद ,सहारनपुर ,बरेली और बदायूं ।


कुछ तथाकथित वामपंथी इतिहासकारों द्वारा जाटों की बहादुर कौम को लूटपाट करने वाली जाति के रूप में भी दर्शाने का प्रयास किया गया है ।जो सर्वथा गलत है । यह बहादुरी के साथ ही न्याय पसंद जाति रही है।

मध्यकाल में मुस्लिम आक्रमणकारियों का जाटों ने पुरजोर सशस्त्र विरोध किया था ।


राजनीति में जाट जाति की सक्रिय भागीदारी हमेशा ही रही है । यह हमेशा ही सकारात्मक सोच रखते रहे हैं ।


सन 1574 में बालियान खाप ने सिसौली के नजदीक शोरण में एक सभा आयोजित की जिसमें मुगल अकबर के सामने अपनी शर्तों पर एक मांग पत्र तैयार करके रखा जाना था । जिसको अकबर को मानना पड़ा था । इस ड्राफ्ट में बहुत सारी महत्वपूर्ण बातें थी । जैसे कि प्रशासन द्वारा बालियान खाप के प्रशासनिक स्वरूप को स्वीकृति, धार्मिक स्वतंत्रता , और सबसे महत्वपूर्ण मांगे यह कि करों की वसूली खाप के द्वारा होगी । अकबर के एजेंटों के द्वारा नहीं ।

मुगलों के समय में बालियान खाप का यह जलवा था । यह उस जाति का जलवा था जिस पर वामपंथी लुटेरे होने का आरोप लगाते हैं ।----जिनको नेहरू-गांधी परिवार के बखान के अलावा कुछ नजर नहीं आता है ।


17वीं शताब्दी में जाट राजशाही की स्थापना हुई ।उत्तर प्रदेश में मुरसन में ,राजस्थान के भरतपुर में ,पंजाब के पटियाला में ।


औरंगजेब के शासनकाल में जाटों ने औरंगजेब के अत्याचारों का जमकर मुकाबला किया जाटों और सिखों ने औरंगजेब का हथियारबंद होकर सामना किया । औरंगजेब को मथुरा के जाट नेता गोकुल , चूड़ामन और राजा राम के विरोध का भारी सामना करना पड़ा । इस जाट आंदोलन ने औरंगजेब के साम्राज्य की चूलें हिला दी । उसे पतन के गर्त में धकेल दिया ।


औरंगजेब के समय में जाट राजा राम के नेतृत्व में सिकंदरा पहुंचे ,अकबर की कब्र खोदी ,उसकी अस्थियां निकाली और उन्हें आग के हवाले कर दिया ।

औरंगजेब द्वारा रेवेन्यू बढ़ाए जाने से शोरन की खाप का मुगलों से नाराजगी फिर बढ़ने लगी । 1664 के लगभग जाटों के साथ अहीर ,गुर्जर भी इस विरोध में शामिल हो गए । मुगल अधिकारी इन किसानों के लिए चोर , फसादी और हरामजादे शब्दों का प्रयोग करते थे ।


औरंगजेब की मृत्यु के बाद भरतपुर के जाट महाराजा ने पतन गामी मुस्लिम साम्राज्य को जोरदार धक्का दिया । महाराजा सूरजमल के द्वारा दिल्ली , आगरा पर भयंकर आक्रमण किया गया ।


जयपुर के उत्तराधिकार के प्रश्न को लेकर भरतपुर के महाराजा जाट सूरजमल से मराठा पेशवा की ठन गई । पानीपत की तीसरी लड़ाई भी मराठों ने बिना जाटों की मदद के लड़ी । इसमें मराठा बुरी तरह से परास्त हुए । अगर जाटों की मदद ली जाती तो भारतीय इतिहास कुछ और होता । तभी से हरियाणा में कहावत चली आ रही है ,'बिना जाट किसने पानीपत जीते ' ।


भारतीय राज्य व्यवस्था में महाराजा सूरजमल का योगदान , सैद्धांतिक या बौद्धिक नहीं ,अपितु रचनात्मक और व्यवहारिक था ।वह बड़े कुशाग्र बुद्धि थे। राजपूत , मराठों या मुसलमानों के साथ गठबंधन की राजनीति के कभी भी शिकार महाराजा सूरजमल नहीं हुए ।


कहने का तात्पर्य यह कि वह कभी भी गठबंधन के जाल में नहीं फंसे जो समय एवं परिस्थिति के अनुकूल न्याय पूर्ण लगा वही महाराज सूरजमल ने किया महाराजा सूरजमल ने कभी भी कमजोर चाल नहीं चली।


1857 में आजादी के पहले आंदोलन में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के गांवों ने अपनी जोरदार धमक दर्ज कराई थी , जो सोची समझी गई साजिश के तहत इतिहास का हिस्सा नहीं बन पाए ।


1947 में पश्चिमी पंजाब एवं सिंध में जाटों ने मुस्लिमों के अत्याचारों का मुकाबला किया ।


पश्चिमी उत्तर प्रदेश के एक साधारण से जाट परिवार में चौधरी चरण सिंह का जन्म हुआ था । चौधरी चरण सिंह जाटों के मसीहा बनकर उभरे । चौधरी चरण सिंह की राजनीति नीचे से ऊपर की ओर चलती थी । उन्हें' रूट लेवल पॉलिटिक्स 'से लेकर प्रधानमंत्री तक की पॉलिटिक्स का अनुभव था । चौधरी साहब उत्तर प्रदेश के दो बार मुख्यमंत्री , केंद्र में मंत्री , उप प्रधानमंत्री और प्रधानमंत्री बने ।

जाट समुदाय का प्रतिनिधित्व करने के बावजूद भी ,जाटों के बड़े लीडर होने के बावजूद भी चौधरी साहब ने कभी जातिगत संकीर्णता का परिचय नहीं दिया । वह जाटों के पैरोकार अवश्य थे लेकिन जातिगत पक्षपात से कोसों दूर थे ।

सन 1957 में उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनाव में चौधरी चरण सिंह जाटों के गढ़ छपरौली से चुनाव लड़े । इस चुनाव में चौधरी साहब बहुत कम वोटों के अंतर से जीत पाए लेकिन चौधरी साहब को यह समझ आ गया था कि केवल जाटों के सहारे ही चुनाव नहीं लड़ा जा सकता है ।


इन्होंने ' अजगर 'की तरफ रुख किया । यानी के अहीर ,जाट ,गुर्जर एवं राजपूत । और इसके साथ ही मुसलमानों को भी शामिल कर अपना जनाधार व्यापक बनाया । इसके लिए चौधरी साहब ने किसानों की सियासत का नारा भी काफी जोर-शोर से बुलंद किया एवं इसमें वह काफी हद तक सफल भी रहे । चौधरी साहब की राजनीति की एक खास बात और थी वह यह कि शहरी और औद्योगिक नीतियों पर फोकस राजनीति से अलग हटकर उन्होंने गांव ,खेत - खलिहान और किसानों की राजनीति की ।

यही उन्हें बाकी राजनीतिज्ञों से अलग बनाता है अपनी इसी जमीनी ताकत के बल पर उत्तर प्रदेश में दो बार मुख्यमंत्री एवं प्रधानमंत्री की कुर्सी तक जा पहुंचे ।


1970 के दशक में जब चौधरी चरण सिंह उत्तर प्रदेश के बाद दिल्ली की सियासत में सक्रिय हुए तो दिल्ली में किसानों की रैलियों का नजारा एक आम बात हो गई । चौधरी चरण सिंह और किसान नेता महेंद्र सिंह टिकैत की किसान रैलियों ने दिल्ली की सत्ता गलियारों को पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों की वोट बैंक की अहमियत से सामना कराया ।


जातीय वोट बैंक को मजबूती देने के लिए चौधरी साहब ने पिछड़ी जातियों को जोड़ा । वह हमेशा छोटे और मध्यम स्तर के किसानों की राजनीति पर जोर देते थे और लगातार किसानों के राजनीतिक प्रतिनिधित्व के लिए काम करते रहे ।


अपने इस उद्देश्य के लिए उन्होंने पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सामाजिक ताने-बाने को राजनीतिक पावर का रूप दिया । जाटों के साथ-साथ यादव मुस्लिम वोट बैंक को जोड़कर चौधरी चरण सिंह ने एक मजबूत आधार बनाया ।


यही वोट बैंक चौधरी चरण सिंह की पार्टी लोकदल का आधार बना । बाद में उनके पुत्र अजीत सिंह की राष्ट्रीय लोक दल की राजनीति का आधार भी यही समीकरण रहा । अब उनका पोता जयंत चौधरी भी इसी समीकरण के आधार आरएलडी की सियासत को आगे बढ़ाने के लिए 2022 के चुनावी रण में शामिल हुए हैं ।


यह जातीय समीकरण लगातार चल रहा था लेकिन 2013 में मुजफ्फरनगर दंगों के बाद यह समीकरण टूट सा गया था लेकिन हाल ही के किसान आंदोलन ने इस समीकरण को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया है । पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान छोटे दर्जे के किसान हैं पंजाब की तरह उच्च स्तर के नहीं । (उनको किसानों से संबंधित कानूनों से कोई नुकसान नहीं था लेकिन तथाकथित किसान नेताओं ने इन छोटे किसानों को गलत नेतृत्व देकर उन्हें दिग्भ्रमित किया है ।केंद्रीय सरकार की नीतियों को किसानों के हित में नहीं बताया गया , के द्वारा इन छोटे किसानों को दिग्भ्रमित किया गया है।)


लेकिन यहां एक बात बिल्कुल स्पष्ट है कि चौधरी साहब के फार्मूले में जहां मुस्लिम वोट का दृष्टिकोण सकारात्मक होता था वहीं समाजवादी पार्टी के बैनर तले यह बहुत संकीर्ण विचारधारा का हो गया है । अगर स्पष्ट रूप से कहें तो यह राष्ट्र विरोधी ,समाज विरोधी हो गया है । सपा का मुस्लिम वोटर खुलकर हिंदू विरोधी बातें एवं हिंदू विरोधी काम करने लगा है ।


वस्तुतः चौधरी चरण सिंह जी के सुंदर फार्मूले में 2022 की सपा कहीं फिट नहीं बैठती है । स्थिति और भी चिंतनीय तब हो जाती है जब पाकिस्तान का प्रधानमंत्री उत्तर प्रदेश में भाजपा को हराने के लिए उत्तर प्रदेश के मुसलमानों से अपील करता है । राष्ट्र विरोधी वक्तव्य देने वाली ,राष्ट्र विरोधी गतिविधियों को अंजाम देने वाली ,जम्मू कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती भी उत्तर प्रदेश के चुनाव के मैदान में मुस्लिमों से भाजपा को हराने की अपील करती दिखती है । दूसरी ओर बंगाल की मुख्य मंत्री ममता बनर्जी उत्तर प्रदेश में भाजपा को हराने की अपील करती हैं ।

अब हम सीधे अनुमान लगा सकते हैं कि 2022 का उत्तर प्रदेश का चुनाव किधर जा रहा है । सामान्य जाट वोटर चालाक नहीं होता है । उसको जो बतलाया जाता है वह वैसा ही करता है । इसलिए कहा जाता है 'जिसके जाट उसके ठाठ 'अब देखना यह है कि जाट की खाट पर कौन बैठता है।


जाटलैंड के जाट की वोट तय करेगी कि उत्तर प्रदेश में भाजपा शासित अमन , चैन एवं विकास होगा या फिर समाजवादी पार्टी के शासन के दौरान का जंगली राज । यह पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अमन-चैन एवं भाईचारा पसंद जाटों के हाथ में है । यह जाटों को तय करना है । जाटों का एक बार पुनः महाराजा सूरजमल जैसी विवेकपूर्ण सोच की दरकार है।


 
 
 

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