कोई शिकायत नहीं
- Shashi Prabha
- 9 जन॰ 2022
- 4 मिनट पठन
अपडेट करने की तारीख: 23 जन॰ 2022
यह कहानी जीवन को जीने की जिजीविशा जगाती है

कॉलेज का शीतकालीन अवकाश चल रहा था । मैं सुबह आराम से जगी ,बिना किसी भागदौड़ के सुबह की चाय पी रही थी ।सूर्य की तपन गुनगुनी धूप बहुत अच्छी लग रही थी ।अखबार भी आ चुका था। पतिदेव की तरफ से भी कोई नाश्ते या लंच की चिंता नहीं थी क्योंकि वह दो दिन के लिए देहरादून से बाहर अपने मित्र के पास गए हुए थे। कॉल बेल बजी मैं समझ गई सरिता आ गई है ।
सरिता जीवन के पैंतालिस बसंत देख चुकी है ,लगता है सरिता काम के लिए और काम सरिता के लिए बना है ।सरिता तेज कदमों से चलते हुए मेरे पास ऊपर फर्स्ट फ्लोर पर ही आ गई ,बिना अपने शब्दों को विराम दिए लगातार बोलना शुरू किया ,"आज मैं लेट हो गई .....शिवम की फीस भरनी उसके स्कूल चली गई थी, आप मुझे जल्दी से बताएं नाश्ते एवं खाने में क्या बनना है कहीं और न देर हो जाए ।"
"आराम से थोड़ी सांस ले ले आज कोई ऐसी जल्दी नहीं है ...कर लेंगे नाश्ता भी ...अकेली हूं मैं ..सर दो दिन के लिए बाहर गए हैं।" मैंने कहा
"फिर भी "सरिता बोली
"अच्छा ! चल चटपटी पकौड़ी बनाला चाय में अदरक वगैरह भी डाल लेना ... थोड़ी तुलसी की पत्तियां भी ....चाय थोड़ी ज्यादा बनाना सर्दी है ...तुम भी चाय पीना ..." मैंने कहा
"अभी लो मैम "सरिता बोली
सरिता किचन में चली गई । मुझे सरिता के आने से काफी राहत महसूस होती थी ।
मैं सोचने लगी कि सरिता भी क्या है ......वास्तव में यह सरिता ही है जीवन के ऊबड़ खाबड़ रास्ते पार करती हुई बिना किसी आवाज के एकदम शांत और गतिमान आगे बढ़ रही है ....सरिता के संपूर्ण जीवन का अक्स मेरे सामने घूमने लगा ...
"सरिता लगभग तेरह साल की रही होगी जब उसकी शादी हरिराम से हुई थी ।हरिराम की उम्र लगभग छत्तीस की रही होगी । शादी के वक्त सरिता बेहद खूबसूरत ... वक्त के साथ चंद्रमा की कलाओं की तरह उसके सौंदर्य में और निखार आता गया ..... हरिराम राजमिस्त्री का काम करता था ...काम ठीक ठाक चल रहा था । परिवार में अभी दो ही सदस्य थे सरिता और हरिराम । विवाह को अभी सात साल ही हुए थे कि सरिता के वैवाहिक जीवन में अंधेरा छा गया ।हरिराम को पागल कुत्ते ने काटा और हरीराम तेरह चौदह दिन में चल बसा ।हां जब हरिराम को यह पता लगा कि उसके बचने की कोई संभावना नहीं है तो उसने सरिता को अपने पास बुलाया ...."अरे मुझे तुझसे कुछ कहना है मेरे पास ज्यादा समय नहीं है ...मैं जो कह रहा हूं ध्यान से सुन... तू मेरे बाद दुनिया में अकेली रह जाएगी... दुनिया बहुत जालिम है तुझे जीने नहीं देगी ....मेरे बाद तू शादी कर लेना ....वीर राम से"
" अरे तुम यह क्या कह रहे हो ...."सरिता चिल्लाई "वीर राम से ,देवर जी से ....जिसकी उम्र मात्र सात साल है ...जो इस समय बाहर कंचे खेल रहा है जिसको खुद दीन दुनिया का पता नहीं है..."
हतप्रभ सरिता हरिराम की बात सुन रही थी । हरिराम का शरीर ज्वर से जल रहा था ..
सरिता हरिराम को दिलासा दे रही थी ".…तुम ठीक हो जाओगे... सब ठीक हो जाएगा ..तुम चिंता नहीं करो ..." दिलासा झूठी साबित हुई और हरीराम सरिता को छोड़कर भगवान को प्यारा हो गया ।
सरिता ने खुद को संभाला साथ ही देवर वीर राम को भी । सरिता ने पड़ोस में लोगों के घरों में जाकर झाड़ू पोंछा , साफ सफाई का काम करना शुरू कर दिया ताकि वीर राम को किसी तरह की कोई दिक्कत नहीं हो...दो वक्त की रोटी का जुगाड़ और वीरराम की फीस दवा दारू का इंतजाम आराम से होने लगा । वीरराम कक्षा आठ पास कर चुका था वह पंद्रह साल का हो चुका था ।
"अब हम आगे नहीं पढ़ेंगे..... हम भी राजमिस्त्री का काम सीखेंगे ".वीरराम बोला
पढ़ा लिखा तो था ही राजमिस्त्री का काम भी आसानी से सीख गया ।
बिल्डिंग पर मजदूरी करने कुछ औरतें ,लड़कियां भी आती थी उन्हीं में से एक लड़की उसको भा गई
"हमने अपने लिए लड़की देख ली है .…हमारी उम्र की है ...सुंदर है.. हमें बहुत पसन्द है ..….हम उससे शादी करेंगे "वीर राम ने अपना फैसला सुना दिया ।
पड़ोस में रहने वाली मौसी उस समय सरिता से ही बतिया रही थी ।
मौसी ने कहा "तू ऐसा कैसे कर सकता है.. हरिराम ने तेरी शादी सरिता से पहले ही तय कर दी थी ..."
"रहने दो मौसी ...मैंने तो अपना फर्ज पूरा किया..." सरिता बोली ।
" नहीं ऐसे कैसे रहने दो भाई ...." पड़ोस से और लोग भी आ गए ।
अंत में वीरराम को सब का फैसला मानना पड़ा । छः साल में तीन बच्चे सरिता को सौगात में वीरराम ने दिए ।
सरिता पड़ोस के घरों में बर्तन साफ करती , अपने तीनों बच्चों को देखती साथ ही वीरराम के अमानवीय व्यवहार को भी बर्दाश्त करती ।
समय निकलता गया और एक दिन वीरराम ने एक युवती के साथ घर में प्रवेश किया ."..यह हमारी पत्नी है ...इसके खाने पीने और सेवा भाव में कोई कमी नहीं आनी चाहिए...." वीरराम ने सरिता को सुना दिया ।
सरिता पर तो मानो मुसीबत का पहाड़ टूट गया और एक दिन सरिता को उसके तीनों बच्चों के साथ घर से निकाल दिया गया ।
किसी तरह सरिता देहरादून पहुंची । काम के लिए कोठियां पकड़ी ।कई जगह दुत्कारी गई ".....काम मांगती है .....इतनी जवान और सुंदर है ....हम अपने लिए क्यों सरदर्दी मोल लें .....कहीं हमारे मर्द फिसल गए तो ....?"
सरिता फिर किसी तरह मेरे संपर्क में आई ।मैंने उसके तीनों बच्चों का एडमिशन स्कूल में कराया ...उसको रहने की जगह दी ।
"मैम मैम्मम...."सरिता आवाज लगा रही थी ।"नाश्ता नीचे करोगी क्या ऊपर ही लेकर आऊं "
आवाज सुनकर मेरी तंद्रा टूटी "हांआआ....मैं आ रही हूं ...नीचे ही ..."
अब सरिता को जीवन से कोई शिकायत नहीं है ।वह निर्मल और कल कल बह रही है ...अपने लिए अपने बच्चों के लिए ।





Bahut sunder 👍