खोया सा बचपन
- Shashi Prabha
- 8 जन॰ 2022
- 2 मिनट पठन
अपडेट करने की तारीख: 23 जन॰ 2022
आधुनिक की दौड़ में वह प्यारा सा बचपन कहीं खो गया है

कहां गया वह बचपन ,
स्कूल से आते ही बस्ते को तेजी से रख कर
खाना अपनी शैली में खाकर
मैदान में खेलने के लिए इकट्ठा हो जाना
कभी टायर दौड़ाना ,कभी रिम को फिसलाना ,
साथ साथ खुद भी दौड़ना
तेजी से खिलखिलाना
मेरा पहिया तेरे पहिए से आगे
स्वस्थ प्रतियोगिता के साथ बहना ।
दूसरी तरफ बालिकाओं के दौड़ने की धमक ,
खिल खिलाने की चहक
दादा दादी ,चाचा चाची ,बुआ की हिदायतें सुनना नाना नानी ,मामा मामी, मौसी से मनुहार कराना
थोड़ा सा ही खाया है कुछ और खा ले और कुछ नहीं तो दूध ही ले ले
लेकिन कुछ खाकर तब खेलने जाना
तीर की तरह से सरपट निकल जाना
अरे बेटा ,अरे लाली, अरे बिटिया
इस स्वर को अनसुना कर
सहेली के घर जाकर इकट्ठा हो जाना
इक्कल दुक्कल, पकड़ा पकड़ी ,खो खो, चोर सिपाही खेलना
पकड़े जाने के डर से रोमांचित हो जाना
गुड्डे गुड़िया खेलते खेलते उत्तरदायित्व का बोध हो जाना
निश्चल बचपन ,भोला सा बचपन
इसका विस्तार बहुत अधिक था
समस्या एवं समाधान सब साथ साथ चलते थे
नाजुक उम्र का कोई ”डिप्रेशन ’नहीं था
कोई तनाव नहीं था
माता-पिता भी तथाकथित ’पी.टी.एम. ’से मुक्त थे दायित्व अभिभावक तक केंद्रित नहीं था
नैतिकता का बोलबाला था
शिक्षक सभी समस्याओं का हल था
किसी पेशेवर मनोवैज्ञानिक की आवश्यकता नहीं थी शिक्षक का विद्यार्थी से एक अनकहा सा नाता था
कोई ’ट्यूशन ’नहीं ,शिक्षा व्यापार नहीं एक दान था शीतकाल में मैदान में क्लास का लगना
कितना लुभावना था
कृतिम विटामिन डी का जीवन में कोई स्थान नहीं था सुंदर स्वस्थ बचपन किलकारियां भरता
कब किशोरावस्था पार कर गया
इसका कोई गणित नहीं था
मैं उस बचपन को आज के बचपन में ढूंढती हूं
जो कहीं नजर नहीं आता
आधुनिकता की दौड़ में
वह प्यारा बचपन कहीं खो गया है।।





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