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चेहरे पर नक़ाब

  • लेखक की तस्वीर: Shashi Prabha
    Shashi Prabha
  • 8 जन॰ 2022
  • 1 मिनट पठन

अपडेट करने की तारीख: 23 जन॰ 2022

घर का तानाशाह मुखिया

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वह ऐसा ताना-बाना बुने

वह ऐसा संसार रचे

जिसमें प्यार भाव झूठे भी न हो

स्मरण उसका आते ही गला सूखने लग जाए

चेहरे पर भाव खुशी का भूले से भी वह न आने देगा बाहर रहे जब वह

अपनी दुनिया अपने अनुसार बुने

घर आना उसका ऐसा हो

जैसे कि सब की खुशियों पर

उसके आतंक का पहरा हो

पत्नी हो बच्चे हो सब उसके आतंक के साए में जीते हो

वह ही पूर्ण है, वह ही आतंक है,

बार-बार वह याद दिलाता है

फुर्सत के पल सिर्फ उसके हैं

इन पर अधिकार एकाकी उसका है

कोई नकब लगाए इसमें

वह यह नहीं होने देगा

वह चिल्लाता है वह रोब दिखाता है

मर्यादा ! कैसी मर्यादा

इसका उससे कोई रिश्ता नहीं

वह धूर्त ,वह मक्कार ,वह क्रूर है

यही उसका असली चेहरा है

बाहर नकली चेहरा लगा वह बेफिक्र घूमता है शराफत का लबादा ओढ़ता है

काल के क्रूर हाथों ने पत्नी को उससे छीन लिया

घर से लक्ष्मी रूठ गई

चारों ओर हाहाकार मचा

लेकिन

आतंकी ललकारा गया

आतंक का स्वर जितना भी ऊंचा हो

भोले रिश्तो का कद हिमालय सा होता है

अब नहीं चलेगा उसका आतंक

वह अपना आतंकी चेहरा नुचता हुआ महसूस कर रहा है

सुरक्षा की दुहाई देता है

रिश्तो की दुहाई देता है

वह समझ गया रावण का भी हुआ था अंत

आतंक का राज्य भरभरा कर गिर रहा है

जैसा उसने दिया वैसा अब वह पा रहा है।

 
 
 

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