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भाजपा के शीर्ष नेता परिवारवाद के असमंजस से बाहर निकलें

  • लेखक की तस्वीर: Shashi Prabha
    Shashi Prabha
  • 15 जन॰ 2022
  • 3 मिनट पठन

अपडेट करने की तारीख: 23 जन॰ 2022


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भाजपा प्रारंभ से ही परिवारवाद का विरोध करती रही है ।यह कोई राजशाही नहीं है कि पुत्र को सिंहासन मिलेगा ही ,हालांकि राजशाही में भी यह ’हार्ड एंड फास्ट ’नियम नहीं था कि सिंहासन ज्येष्ठ पुत्र को मिलना ही मिलना है ।

उत्तराधिकारी बनने के कुछ नियम भी थे ,उसका योग्य होना भी जरूरी है ,आचरण का धनी हो, उसमें जनहित की भावना हो ,उसका दूरदर्शी होना, उसका निस्वार्थ होना .....राजकोष को निजी संपत्ति नहीं समझ कर उसको जनता की अमानत समझना, ...…..समय आने पर मैदान छोड़कर नहीं भाग जाना..… हर समय जनहित मुद्दों के लिए स्वयं को उपलब्ध कराना ।

कहने का आशय है कि’ राजनीतिक उत्तराधिकारी’ ’थोपा ’नहीं जाता है उसके लिए कुछ अपरिहार्य गुणों की आवश्यकता होती है ।

अब प्रश्न उठता है कि भाजपा को ’परिवारवाद परंपरा’ का विरोध क्यों करना पड़ा ।

स्थिति एकदम स्पष्ट है जिसका उत्तर शीशे की तरह एकदम साफ है ।अपने देश ने आजादी के बाद राजनीति में जिस परिवारवाद को देखा वह देश की नहीं परिवार की चिंता करने वाला ज्यादा था देश की राजनीति’ नेहरू गांधी’ परिवार वाद के चंगुल में फंस कर रह गई ।

उत्तराधिकारी योग्य है या नहीं यह विचार नहीं किया गया । दूरदर्शी है या नहीं। वह राष्ट्र प्रेमी है या नहीं। वह विचारशील है या नहीं ,उसके विचारों में परिपक्वता है या नहीं ,इसका विचार नहीं किया गया । उसको तो बस पार्टी पर थोपना है और परिणामस्वरूप राष्ट्र की जनता पर थोपा जाना है ।

इसी परिवारवाद ने भाजपा को बाध्य किया है की हम भारत की जनता को इस परिवारवाद से मुक्ति दिलाएंगे क्योंकि भाजपा का मौलिक उद्देश्य राष्ट्रहित है ।

लेकिन अब सोचने वाली बात है कि परिवार में से किसी दूसरे को टिकट क्यों नहीं दिया जाए । पार्टी कार्यकर्ता से बनी है, कार्यकर्ता से ही पार्टी है, कार्यकर्ता समाज से आता है और समाज परिवार का विस्तृत रूप है ।कार्यकर्ता भी अपना पूरा समय, पूरी शक्ति, तन मन धन से पार्टी को अर्पित है।

भाजपा को अपराध बोध की भावना से ग्रस्त नहीं होना चाहिए भाजपा के शीर्ष नेताओं का फार्मूला कि 75 वर्ष की आयु से अधिक व्यक्ति को सक्रिय राजनीति में नहीं रखा जाएगा विचारणीय है एक उत्तम सोच है।

लेकिन चिंतन का विषय यह भी है कि जिस व्यक्ति ने अपने जीवन में इतने वर्षों तक राजनीति की है, जिस व्यक्ति ने अपने जीवन के इतने वर्ष राजनीति को दिए हैं ,उसके घर का वातावरण कैसा रहा होगा ?

इस वातावरण में अकेला एक व्यक्ति , अकेला वही व्यक्ति ’ इंवॉल्व’ नहीं होता है बल्कि पूरा परिवार उसकी गतिविधि में शामिल होता है। पूरा परिवार उसकी हार में ,जीत में, उसकी सफलता में ,विफलता में शामिल होता है । उसके परिवार के सदस्यों की सोच उस व्यक्ति से सीधे प्रभावित होती है । उस व्यक्ति की तरह ही परिवार का अन्य सदस्य भी पैनी राजनीतिक सोच रखने लगता है ।

( हालांकि कहीं इसके अपवाद भी होते हैं )क्योंकि राजनीति 24 * 7 के फार्मूले पर चलती है । यह कोई वक्त गुजारने का या दिल बहलाने का माध्यम नहीं है । यह घर फूंक तमाशा देखने वाली विचारधारा है । यह बरसाती मेंढक वाली जमात नहीं है ....जब पार्टी को आप की आवश्यकता है उस समय आप अपने संपूर्ण रूप में पार्टी के साथ हैं उस समय आप पिकनिक मनाने विदेश में नहीं होते हैं ।

जिस व्यक्ति ने राजनीति को ,देश सेवा को अपनी पूरी युवावस्था दे दी है अगर उसके परिवार के किसी ’योग्य ’सदस्य को उसका राजनीतिक उत्तराधिकारी बनाने की बात आती है तो भाजपा इस पर निसंकोच सकारात्मक निर्णय ले सकती है।

कार्यकर्ताओं में से भी ’हीरे तलाशना’ जारी रखें।.... ”यह जनता है सब जानती है .... उसको अच्छा परोसा जाएगा तो वह कंकड़ क्यों खाएगी ” रही विरोधी पार्टियां , उनको तो विरोध के लिए विरोध करना है उनके पास तर्कों की भारी कमी है , उनके तो आक्षेप यहां तक होते हैं ....”जिनके पास परिवार ही नहीं है, वह परिवार की, समाज की, राष्ट्र की समस्याओं को क्या समझेगा ”? विरोधी पार्टियां जो सोचती हैं उन्हें सोचने दें , सबको सोचने का अधिकार है ।

भाजपा शीर्ष नेता असमंजस से बाहर आएं।


 
 
 

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