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भारतीय समाज की रीढ़ - स्त्री

  • लेखक की तस्वीर: Shashi Prabha
    Shashi Prabha
  • 29 जन॰ 2022
  • 7 मिनट पठन

अपडेट करने की तारीख: 30 जन॰ 2022

भारतीय समाज को मैरिटल रेप की अवधारणा की दरकार नहीं है।

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हर देश और उससे जुड़ा उसका समाज ,उन सब की समस्याएं अलग-अलग होती हैं । समस्याओं के पैदा करने की परिस्थितियां अलग होती हैं । उन समस्याओं से कैसे लड़ा जाए उसका रूप भी अलग होता है । समाज में रहने वाला इंसान और व्यक्ति की सोच भी अलग होती है ।और उस सोच को , उस धारणा को मूर्त रूप देने का विचार भी अलग होता है ।


भारतीय संस्कृति विश्व को सकारात्मक संदेश देने वाली रही है । यह विश्व के लिए सकारात्मक ध्वजवाहक रही है ।यह शांति और अमन की संस्कृति रही है। वक्त आने पर इस संस्कृति ने अपने दमखम का परिचय भी लगातार दिया है ।

’क्षमा शोभती उस भुजंग को

जिसके गाल गरल हो’


बलशाली द्वारा ही कमजोर को क्षमादान दिया जाना क्षमा कहलाता है । विपरीत परिस्थितियों में तो यह कायरता का ही पर्याय है । किसी भी समाज की रीढ़ उस समाज की स्त्री होती है ,उसमें रहने वाला नारी समाज होता है ।


भारत की नारियां हमेशा देने वाली स्थिति में रही हैं । उसने सदैव ही अपने सद्गुणों से समाज की चेतना को जागरूक रखा है । प्राचीन भारतीय समाज एवं प्राचीन भारतीय समाज का इतिहास, इन स्त्रियों से इन नारियों के उदाहरण से भरा पड़ा है ।


यह नितांत कोरी कल्पना नहीं है इसके अकाट्य प्रमाण हैं । गौरी शंकर ,सीताराम ,राधेश्याम, ’गौतमीपुत्र सातकर्णि ’(गौतमी की मां ) यह भारतीय समाज में स्त्री की मजबूत एवं सम्मानजनक स्थिति को दर्शाता है ।


विदेशी भारत में हमेशा से आते रहे हैं । भारतीय समाज ने उनको खुले दिल से स्वीकार किया है , क्योंकि उन्होंने भारतीय संस्कृति को गले से लगाया उसको अंगीकार किया । भारतीय संस्कृति में यह आने वाले सभी लोग यहीं बस गए । यहां तक की इन्होंने भारतीय नाम भी धारण किए ।

भारतीय संस्कृति वसुधैव कुटुंबकम में विश्वास करती रही है । परिणाम स्वरूप भारत में ये आगंतुक सुंदर भारतीय संस्कृत संस्कृति का हिस्सा बन गए । भारतीय संस्कृति के साथ इन्होंने कोई छेड़छाड़ नहीं की और समाज में स्त्री का रूप सम्मानित बना रहा । वह अपने पति की अर्धांगिनी बनी रही । किसी की प्यारी बिटिया तो किसी की प्यारी बहन बनी रही ।


दुर्भाग्य से एक दौर ऐसा शुरू होता है जिसका आघात इस सम्मानित स्त्री को झेलना पड़ा । यह मुस्लिम आक्रांता रहा है ,जिसने भारत पर आक्रमण किए ।यहां बसने के लिए नहीं बल्कि यहां के धन को लूटने के लिए एवं यहां अपने इस्लाम धर्म के प्रचार प्रसार के लिए ।

यह एक हाथ में तलवार दूसरे में कुरान लेकर आया । समृद्ध एवं शांत भारतीय समाज को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ी । भारतीय समाज की रीढ़ ’स्त्री’ पर भारी प्रहार किए गए ।

स्त्री अस्मिता को इन आतंकियों द्वारा तार-तार कर दिया गया । स्त्री का घर से बाहर निकलना ,स्वतंत्र घूमना इनके द्वारा असंभव कर दिया गया ।


समाज , स्त्री अशिक्षा , पर्दा प्रथा ,बाल विवाह , सती प्रथा ,अनमेल विवाह जैसे अभिशप्त अवगुणों से शापित हो गया ।


इन अभिशापों से भारतीय समाज पूर्णतया मुक्त था । हिंदू धर्म के चार वेद- ऋग्वेद ,यजुर्वेद ,सामवेद एवं अथर्ववेद इन चारों वेदों में से किसी में भी स्त्री को सती करने जैसे व्याख्या नहीं है । वेद और महाकाव्य रामायण एवं महाभारत इसके सशक्त उदाहरण है ।


अथर्ववेद 18/3/2 मंत्र में स्वयं सायन टिप्पणी करते हैं ,"हे मृत पति की धर्मपत्नी तू मृत के पास से उठकर जीवित लोक में आ ,तू इस निष्प्राण पति के पास क्यों पड़ी हुई है , पाणी ग्रहण कर्ता पति से तू संतान पा चुकी है ,उसका पालन पोषण कर ”

राजा दशरथ की मृत्यु के उपरांत रानियों का सती न होना यह दर्शाता है कि समाज में यह घृणित , बाध्यकारी प्रथा नहीं थी ।


अगर महाकाव्यों में सती होने का कोई उदाहरण है तो यह बाध्यकारी प्रथा न होकर व्यक्ति विशेष के मनोभावों के कारण है । महाभारत में माद्री का पांडु के मृत शरीर के साथ आत्मदाह करने का वर्णन आता है ।


लेकिन इसका सती प्रथा से कोई संबंध नहीं है ।


बाल विवाह ,पर्दा प्रथा जैसा कोढ़ समाज में दूर तक नहीं था ।वेद साक्षी है जब वर्णन आता है की युवतियां सूर्य की रश्मियों की तरह चमकते हुए सार्वजनिक समारोह में अपनी उपस्थिति दर्ज कराती है ।


मध्यकालीन भारत में बंगाल के कुछ पौराणिक पंडितों ने ऋग्वेद 10 /18/7 में अग्रे के स्थान पर अग्नि शब्द को प्रयुक्त कर सती प्रथा को वैदिक सिद्ध करने का भरपूर प्रयास किया था । अग्रे की गलत व्याख्या करके अग्रे को अग्नि बताना गलत था । वस्तुतःइस मंत्र में वधु को अग्नि नहीं अपितु अग्रे यानि कि गृह प्रवेश के समय आगे चलने को कहा गया है ।बंगाल में अग्रे शब्द की गलत व्याख्या ने भारी तांडव मचाया ।

खैर, राजा राममोहन राय के प्रयासों से उन्नीसवीं शताब्दी में इस कोढ़ से छुटकारा मिला ।


पुनश्च मध्य काल में, पर्दा प्रथा , बाल विवाह , अनमेल विवाह ने सभ्य ,स्वस्थ भारतीय समाज को गिरफ्त में ले लिया । इसका प्रत्यक्ष कारण मुस्लिम आक्रमणकारियों ,मुस्लिम शासकों ,मुस्लिम सरदारों द्वारा गैर मुस्लिम समाज की लड़कियों का अपहरण , उन्हें जानवरों की भांति हरम में ठूंसना, उनका शीलभंग करना था ।


क्योंकि ये नरपिशाच भारतीय समाज को खोखला करना चाहते थे । उन्होंने बड़े ही सोच समझकर योजनाबद्ध तरीके से समाज की रीढ़, 'स्त्री' पर हाथ डाला ।


परिणाम स्वरूप भारतीय समाज से लगभग 800 वर्षों तक यह कोढ़ रिसता रहा । परिवार को इस कलंक से बचाने के लिए ,बेटियां रजस्वला होने से पूर्व ही ब्याह दी जाए , की सोच को जन्म मिला ।बाल विवाह को जन्म मिला , अनमेल विवाह , बहु विवाह का जन्म हुआ । हिन्दुओं ने अपनी इज्जत ,यानी कि अपनी स्त्री को बचाने के लिए ,'कन्या शिशु वध' शुरू कर दिया । पिता पुत्रियों को ,भाई बहनों को, आत ताइयों से बचाने के लिए पुत्री जन्म ही बंद कर दिया गया ।दिल पर पत्थर रखकर पिता द्वारा ,भाइयों द्वारा यह काम कैसे किया गया होगा ,यह रूह कंपाने वाला है ।


उन्नीसवीं शताब्दी में भारतीय समाज सुधारों का एक वर्ग ब्रह्म समाज ,आर्य समाज के रूप में सामने आया जिससे सूरत थोड़ी बदलने लगी । बीसवीं शताब्दी में हालात बेहतर से बेहतर होने की ओर बढ़ चले ।


हालात बेहतर से बेहतर हों तो सराहनीय है लेकिन बेहतर से बदतर की ओर चलें तो विचारणीय प्रश्न है । कहीं तथाकथित पाश्चात्य आधुनिकता के प्रभाव समाज के स्वस्थ वातावरण को कहीं निगल न जाए यह चिंता का विषय है ।


समाज में सुधार ,सुधार के लिए होते हैं । सकारात्मक रूप के लिए होते हैं उनका गलत प्रयोग समाज का कोढ़ साबित होता है ,जो समाज की उन्नति को निगल जाता है । आज के समय में स्त्रियों को यह सब तो जताने का प्रयास किया जाता है कि भारतीय समाज ने एक हजार वर्षों में उनको क्या दिया गया । समाज में स्त्री की क्या स्थिति थी? लेकिन यह नहीं बताया जाता ऐसा क्यों कर हुआ ? उन्हें यह नहीं बताया जाता कि उनके पिता को ,भाइयों को यह कदम क्यों उठाना पड़ा ,! यह नहीं बताया जाता है कि मुस्लिम समुदाय ,मुस्लिम शासकों की गंदी मानसिकता ने उन्हें अपनी बेटियों की इज्जत बचाने के लिए यह सब करने के लिए बाध्य किया ।एक तरफ पिता एवम् भाई ,बहनों ,बेटियों की रक्षा करते रहे तो दूसरी और नर पिशाचों से युद्ध करते हुए युद्ध भूमि में खेत होते रहे । रानियां ,सामंतों की पत्नियों के साथ जोहर करती गई ।


खैर, इस समय भारतीय समाज को बहुत ही सावधानी से चलना है । स्मरण रहे तथाकथित अत्याधुनिकता हमारी समाज की रीढ़ स्त्री को पुनःनिगल ना जाए । स्त्री अधिकारों का समुचित उपयोग ही स्त्री की उन्नति का रामबाण है ।


पाश्चात्य नियमों को हम आंख मूंदकर अनुसरण नहीं कर सकते हैं ।'मैरिटल रेप 'जैसी हमारे यहां कोई सोच पैदा नहीं होनी चाहिए ।पश्चिम एवं पूर्व की सोच में बहुत अंतर है । यह फसल जिस धरातल पर उगती है उस जमीन की सोच में बहुत अंतर है ।


भारतीय संस्कृति में विवाह एक संस्कार है । एक पवित्र बंधन है ।भारतीय संस्कृति में विवाह कोई अनुबंध नहीं है । यह कोई समय सीमा वाला करार नहीं है कि समय सीमा पूरी हो गई तो चल दिए । भारतीय संस्कृति में विवाह दो शरीरों का मिलन नहीं है ,यह दो आत्माओं का मिलन है ।और हिंदुओं में आत्मा अजर है ,अमर है ,तो विवाह भी आत्मा का आत्मा से सात जन्मों का बंधन है ।सात जन्म का अर्थ हुआ सात बार मृत्यु और 7 बार जन्म ।


तो मैं पूछना चाहती हूं कि सुंदर बंधन में 'मैरिटल रेप' कहां से आ गया । भारतीय संविधान मौलिक अधिकारों की रक्षा करते हुए स्त्री को बिन ब्याही मां बनने का अधिकार दे सकता है । सेरोगेट मदर का अधिकार दे सकता है लेकिन भारतीय नैतिकता इस व्यवस्था की प्रशंसक या पैरोकार नहीं है और ना ही होना चाहिए ।


आंख बंद कर हम पश्चिम की नकल नहीं कर सकते हैं इस प्रकार की बातें बॉलीवुड की खबरो तक ही अच्छी लगती हैं आम भारतीय समाज में तो यह चटपटी खबरें कहलाती हैं जिसको शायद ही कोई पुत्री या बहन स्वीकार करें ।


भारतीय समाज में जब पिता अपनी पुत्री के लिए वर की तलाश करता है तो पुत्रियां अपनी इच्छा व्यक्त कर सकती हैं कि मैंने भी अपने लिए एक लड़का पसंद किया हुआ है आप चाहे तो उससे मिल सकते हैं लेकिन वह अपने पिता से ऐसा कतई नहीं कहेगी कि पापा मुझे विवाह की आवश्यकता नहीं है या मैं बिन ब्याही मां बनना पसंद करूंगी । बेटी अविवाहित रहने का फैसला एक बार को कर सकती है लेकिन बिन ब्याही मां बनना नहीं ।


आधुनिक भारतीय समाज सभी धर्मों का संगम है और यह धारणा संपूर्ण भारतीय समाज की धारणा है किसी एक वर्ग विशेष की या धर्म विशेष की नहीं ।


मैरिटल रेप की सोच पश्चिमी देशों में तो अच्छी खासी पनप रही है लेकिन भारत में इस सोच की घुसपैठ कानून का रूप अख्तियार करें यह संभव नहीं है । यह सोच भारत में कानून का रूप में न ले तभी भारतीय समाज ,भारतीय वैवाहिक जीवन स्वस्थ रह सकता है ।

भारतीय संस्कृति में विवाह के बाद दो व्यक्तियों का मिलन किसी अपराध की श्रेणी में नहीं आता है ।


मैं वर्तमान भारतीय केंद्रीय सरकार की प्रशंसा करूंगी जिसने हाल ही में मेरिटल रेप से जुड़ी याचिका का विरोध किया । केंद्र सरकार ने दिल्ली हाई कोर्ट से कहा की भारत को इस मामले में सावधानीपूर्वक आगे बढ़ने की आवश्यकता है । हमें आंख बंद करके मैरिटल रेप मामले में पश्चिमी देशों का अनुसरण नहीं करना चाहिए ।वहां पर मैरिटल रेप को अपराध की श्रेणी में रखा गया है । केंद्र सरकार ने कहा कि मैरिटल रेप को किसी भारतीय कानून के अंतर्गत परिभाषित नहीं किया गया है । जबकि इंडियन पीनल कोड की धारा 375 के तहत बलात्कार को परिभाषित किया गया है । मैरिटल रेप को साबित करने के लिए व्यापक आधार की आवश्यकता होगी इसके लिए समाज में भी आम सहमति होना चाहिए । मैरिटल रेप क्या होता है यह बताने की आवश्यकता है ।


मेरा ऐसे याचिकाकर्ताओं से अनुरोध है कि भारतीय समाज को पुनः नारकीय स्थिति में धकेलने का प्रयास न करें यह भारत भूमि है ।संपूर्ण विश्व इसकी ओर टकटकी लगाए देख रहा है भारतीय समाज को एवम् समाज की रीढ़ स्त्री को पुनः खोखला करने का प्रपंच शुरू हो चुका है इस बार आक्रांता कोई अन्य है । सोच वही पुरानी है । मध्यकालीन वाली । लेकिन नए लिबास में ।


मैं भारतीय स्त्री के सम्मान की सशक्त पक्षधर हूं लेकिन तथाकथित आधुनिकता की चाशनी में लिपटे पाश्चात्य विचारों की धुर विरोधी हूं ।ऐसी 'लाल सलाम' वाली सोच से हमें बचना होगा।

 
 
 

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