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रानी की वाव

  • लेखक की तस्वीर: Shashi Prabha
    Shashi Prabha
  • 31 मार्च 2024
  • 2 मिनट पठन

अपडेट करने की तारीख: 6 अप्रैल 2024

प्राचीन भारत में जल संरक्षण की परंपरा रही है इसके लिए  राजा,महाराजा एवम् रानियों द्वारा बावड़ी या वाव , तालाब एवम् कुएं आदि निर्मित कराने की परंपरा रही है।


भारत राज्य के गुजरात के पाटन जिले में साबरमती नदी के तट पर 'रानी की वाव' (सीढी दार कुआं )जल संरक्षण की प्राचीन परंपरा का अद्भुत उदाहरण है । पाटन को पहले अनहिलपुर के नाम से जाना जाता था जो गुजरात की राजधानी था । 'रानी की वाव' का निर्माण चालुक्य नरेश भीमदेव प्रथम  (1022-1063ई.) की रानी उदयमती ने 1063 ई.  के पश्चात अपने पति की स्मृति में कराया था।


भीमदेव प्रथम गुजरात के चालुक्य वंश के संस्थापक मूलराज के पुत्र चामुंड राज का पोत्र था ।  चामुंड राज के बड़े पुत्र वल्लभ राज की मृत्यु अपने पिता के शासनकाल में ही हो गई थी अतः वल्लभ राज का छोटा भाई दुर्लभ राज अपने पिता का उत्तराधिकारी हुआ।


1022 ई.के लगभग दुर्लभराज ने राजकाज से निवृत्ति ले ली और अपने स्थान पर अपने भतीजे भीमदेव प्रथम को राजा बनाया । महमूद गजनवी ने 1025 ई. में भीमदेव प्रथम के साम्राज्य पर आक्रमण किया एवं सोमनाथ मंदिर को नष्ट भ्रष्ट किया ,मंदिर को तोड़ा गया एवं लूटा गया ।


वाव की वास्तु शिल्प बड़ी ही मनमोहक है । पत्थरों में लावण्य  देखने लायक है ।' रानी की वाव'बोलती सी प्रतीत होती है।खूबसूरती की झलक इसकी सुंदर बारीक नक्काशी में देखी जा सकती है ।  वाव के स्तंभों पर सुंदर पुष्पों की बारिक नक्काशी की गई है । साथ ही इन पर कई देवी देवताओं की कलाकृतियां बनी है । वाव की दीवारें पत्थर तराश कर मूर्तियों से अलंकृत की गई हैं ।


इन दीवारों पर महिषासुर मर्दिनी , पार्वती एवं शिव संप्रदाय की अन्य प्रतिमाएं , भगवान विष्णु की प्रतिमाएं विभिन्न मुद्राओं में है ।भगवान विष्णु विभिन्न अवतारों में दिखाए गए हैं । भैरव ,गणेश , सूर्य ,कुबेर लक्ष्मी नारायण , अष्टाधिक पाल आदि से अलंकृत  हैं । साथ ही नारी प्रतिमाओं का ,अप्सरा ,योगिनी ,नागकन्या के रूप में चित्रण है ।


रानी की वाव पूर्व -पश्चिम दिशा में निर्मित है।इसका कुआं पश्चिम छोर पर स्थित है । यह 64 मीटर लंबा 20 मीटर चौड़ा और 27 मीटर गहरा है ।साबरमती नदी में बाढ़ आने पर यह वाव रेत से भर गई । शताब्दियों तक इस वाव  की कोई सुध नहीं ली गई ।


1947 ई.में देश के स्वतंत्र होने के पश्चात 1960 ई .के बाद इसमें से रेत निकालने का कार्य शुरू हुआ ।भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने यहां पर उत्खनन कार्य प्रारंभ किया इसके बाद ही मिट्टी में दबी इस अमूल्य वास्तु शिल्प के दर्शन हो पाए ।


22 जून 2014 ई. को रानी की वाव को यूनेस्को ने विश्व विरासत स्थल की सूची में शामिल किया है ।

जुलाई 2018 ई .में रिजर्व बैंक ऑफ़ इंडिया द्वारा ₹100 के नोट पर रानी की वाव को चित्रित किया गया है।



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