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स्वाभिमान

  • लेखक की तस्वीर: Shashi Prabha
    Shashi Prabha
  • 8 जन॰ 2022
  • 2 मिनट पठन

अपडेट करने की तारीख: 23 जन॰ 2022

स्वाभिमान कहें या आत्मसम्मान ,दोनों का आशय एक ही है।स्वाभिमान अपरिहार्य है।

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स्वाभिमान, अहंकार नहीं है। आत्मा का अपना भोजन होता है। अब यह कहा जा सकता है कि आत्मा तो अजर है अमर है इसका भौतिक पदार्थों से क्या संबंध? मगर ऐसा नहीं है । आत्मा का अपना भोजन होता है, का आशय है कि ऐसा व्यवहार, ऐसी सोच जो आत्मा को पवित्रता के सांचे में ढाल सके । दूसरे का दिल मत दुखाइए, बांटकर खाइए ,चोरी मत कीजिए, हिंसा से दूर रहिए । हिंसा से दूर रहने का अर्थ हुआ कि किसी को मनसे, वचन से ,कर्म से ,हम आघात ने पहुंचाएं ।स्वाभिमानी एवं आत्म सम्मानी व्यक्ति दयालु होता है, प्राणी मात्र के लिए। परिश्रमी होता है अपने उद्देश्य के लिए। ऐसा परिश्रम जो परिणाम में सकारात्मक हो। जितना हम पा रहे हैं वह ईश्वर की कृपा एवं हमारे परिश्रम का फल है।


स्वाभिमानी जिद्दी न होकर दृढ़ निश्चई होता है । उदार मना एवं ढुलमुल प्रवृत्ति दोनों में अंतर है। वह परिस्थितियों का आकलन कर तोल कर बोलता है। स्वाभिमानी किसी खैरात का मोहताज नहीं होता है, वह कर्तव्यनिष्ठ होता है ।स्वाभिमानी व्यक्ति स्वयं का सम्मान करता है अतः दूसरे के सम्मान की रक्षा करता है ।वह प्राणी मात्र में ईश्वर के वास् को महसूस करता है ।स्वाभिमानी व्यक्ति सत्यता का दामन नहीं छोड़ता है ।झूठ शब्द से इसका कोई संबंध नहीं होता है।

आत्म समानार्थ, स्वाभिमानी व्यक्ति प्रकाश की ओर आकृष्ट होता है ,नैतिकता का प्रकाश , गुणों का प्रकाश ,ज्ञान का प्रकाश ।अंधेरी में पाप पनपता है। कुकर्मी हमेशा अंधेरे की तलाश में होता है ,जहां उसे कोई देख न सके ,जहां अज्ञानियों का जमावड़ा हो ।अंधेरों से निकलिए ।अवगुणों से दूर होने का प्रयास कीजिए।

जो जैसा होता है वह दूसरे को भी वैसा ही देने का प्रयास करता है ।आगे बढ़ने के लिए, अपने उद्देश्य को पाने के लिए स्वयं को विशाल बनाइए, परिश्रम कीजिए , अपने आगे चलने वाले की टांग पीछे मत खींचिए। उस पर किसी भी तरह का आक्षेप लगाने से बचें। अंधकार से प्रकाश की ओर आइए । अज्ञानता से ज्ञान की ओर आइए ।अंधेरे से निकल जाना ही प्रकाश में आ जाना होता है । रात्रि का समाप्त हो जाना ही दिन का निकल जाना होता है, सुबह हो जाना होता है ।यही आत्मसम्मान है, यही स्वाभिमान है।




 
 
 

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