
हिजाब
- Shashi Prabha
- 15 फ़र॰ 2022
- 7 मिनट पठन

अंधेरा क्या होता है यह वही जान सकता है जिससे आंखों की रोशनी छीन ली गई हो । हिजाब ,बुर्का क्या होता है यह अफगानिस्तानी स्त्रियों से पूछिए जिनका तालिबानियों ने जीवन नर्क बना दिया है ।
इन तालिबानियों के तालिबानी आदेश जारी हुए - स्त्रियां हिजाब लगाएंगी ,बुर्का पहनेंगी । महिलाओं ने अपने को हिजाब और बुर्के से ढक लिया । फिर भी तालिबानियों का कहर थमा नहीं । स्त्रियों को सरकारी एवं निजी नौकरियों से जबरन हटा दिया गया सेना , मेडिकल क्षेत्र महिलाओं के लिए बंद हो गए । शिक्षा महिलाओं के लिए पूर्णतया वर्जित कर दी गई ।
21वीं सदी की मुस्लिम महिलाओं को हजार साल पुराने मुस्लिम वातावरण में धकेल दिया गया बुर्का न पहनने वाली स्त्रियों पर तालिबानी कोड़े बरसा रहे हैं कुल मिलाकर अफगानिस्तान में तालिबानियों ने महिलाओं की स्थिति दयनीय बना दी है ।
बीसवीं सदी के आठवें दशक में ईरान में हुई इस्लामिक क्रांति ने कट्टरपंथियों को मौका दिया कि वे महिलाओं की सुकून भरी जिंदगी में आग लगाए । महिलाओं को हिजाब ,नकाब एवं बुर्का पहनने के लिए बाध्य किया गया । परिणाम स्वरूप ईरान में भी महिलाएं बुर्के से निजात पाने के लिए संघर्ष कर रही हैं ।
बहुत से मुस्लिम देशों में सरकारी कार्यालयों एवं शिक्षण संस्थानों में हिजाब पर प्रतिबंध है । मुस्लिम देशों में अगर हिजाब की बात की जाए तो बहुत से संस्थानों ने हिजाब को प्रतिबंधित किया है । इन प्रतिबंधों को मिस्र के लोगों से समर्थन भी मिला है । मिस्र में उच्च आर्थिक स्तर वाला , संभ्रांत समुदाय ने हिजाब को किसी भी प्रकार का समर्थन नहीं दिया है । हिजाब, बुर्का ,पर्दा महिलाओं के रोजगार के अवसर सीमित करता है । हिजाब को कट्टरता से जोड़कर या यूं कहें कि दकियानूसी से जोड़कर देखा जाता है ।
सऊदी अरब में हिजाब पहनना अनिवार्य नहीं है । इंडोनेशिया ,जॉर्डन में हिजाब की कोई अनिवार्यता नहीं है । कजाकिस्तान की सरकार द्वारा हिजाब को , नकाब को सार्वजनिक स्थलों पर प्रतिबंधित कर दिया गया है । पाकिस्तान में भी हिजाब एवं बुर्का अनिवार्य नहीं है । हालांकि वह दिन दूर नहीं है जब पाकिस्तान समर्थित तालिबान अफ़गानिस्तान से आगे बढ़कर पाकिस्तान में अपने पांव पसार लेगा ।
आखिर क्या वजह है कि इन देशों ने हिजाब को अपने यहां अनिवार्य नहीं माना है । इसका सीधा सा उत्तर है कि इन देशों ने भली-भांति समझा कि पुरुष प्रधान मानसिकता के अनुसार अगर चला जाएगा तो महिलाओं का विकास प्रभावित होगा ,महिलाएं पिछड़ जायेंगी ।इस तरह परिवार , समाज एवं राष्ट्र पिछड़ जाएगा ।
भारतीय मुस्लिमों ने इन देशों की मानसिकता से भी कुछ नहीं सीखा । क्या मुस्लिम लड़कियां अपने आसपास घटित घटनाओं से कुछ नहीं सीखती हैं ? भारत के बराबर में तालिबान उन औरतों पर कोड़े बरसा रहा है जिन्होंने हिजाब नहीं लगाया है , जिन्होंने बुर्का नहीं पहना है , जो पर्दे में नहीं रहती हैं । क्या वे अपने आसपास घटित घटनाओं से अपडेट नहीं रहती हैं ? अगर अपडेट रहती तो शायद कर्नाटक में कुछ छात्राएं हिजाब पहनकर स्कूल आने पर आमादा नहीं होती ।
कर्नाटक के उडुपी जिले के एक सरकारी स्कूल में छ छात्राएं हिजाब पहनकर स्कूल कैंपस में तो आती थी लेकिन चूंकि हिजाब स्कूल यूनिफार्म का हिस्सा नहीं है तो कक्षा में बिना हिसाब के ही पढ़ती थी । ऐसा कुछ समय से चला आ रहा था लेकिन दिसंबर माह में यह लड़कियां अचानक हिजाब लगाकर कक्षा में पढ़ने की जिद करने लगी । स्कूल प्रशासन ने मना किया तो छात्राओं ने संकल्प लिया कि हिजाब नहीं तो पढ़ाई भी नहीं ।
उडुपी के साथ ही शिवमोगा के स्कूल भी इस तपिश से प्रभावित होने लगे । कर्नाटक के साथ ही अन्य राज्य भी इस हिजाब की आग में झुलसने लगे हैं । विभिन्न राज्यों में लोग हिजाब के समर्थन में सड़कों पर आने लगे हैं ।
यही नहीं ऐसे लोग मुस्लिम महिलाओं को बरगलाने का काम करने लगे हैं । मोदी सरकार पर सीधा आक्षेप लगाने लगे हैं । यह सरकार मुस्लिम महिलाओं की हितैषी नहीं है । यह सरकार मुस्लिम महिलाओं के मौलिक अधिकारों का हनन करती है । हिजाब मुस्लिम महिलाओं का अधिकार है ।
उदिपी जिले के सरकारी स्कूल का मामला अदालत की चौखट तक जा पहुंचा है । कर्नाटक हाईकोर्ट में याचिका दायर कर दी गई है । हाई कोर्ट का फैसला कुछ भी होगा लेकिन हिजाब को समर्थन देने वाले लोगों की सोच से तो मुस्लिम महिलाएं निश्चित रूप से प्रभावी होंगी । महिला सशक्तिकरण की सोच इससे भयावह रूप से प्रभावित होगी ।
यह बड़े आश्चर्य की बात है कि जब विश्व में लड़कियों , महिलाओं को परदे में रखने का चलन समाप्त प्राय की तरफ है ऐसे में 84% साक्षरता वाले राज्य में मुस्लिम छात्राओं द्वारा हिजाब पहने की ज़िद करना, हिजाब पहनने की रट लगाना इन छात्राओं की कूप मंडूक को दर्शाता है । यह सोच यह दर्शाती है कि हमारे पैरों में बेड़ियां डालो ,हमें कुरीतियों की जंजीरों से बांध दो , क्योंकि हमें इन जंजीरों में जकड़ा रहना पसंद है । हम पढ़ना छोड़ देंगे लेकिन हिजाब नहीं छोड़ेंगे ।
इस हिजाब बवाल ले उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 की सेकंड फेज पोलिंग ,जो 9 जिलों की 55 सीटों के लिए थी ,को भी प्रभावित किया है । जब वोटर से हिजाब के बारे में मीडिया द्वारा पूछा गया तो लगभग सभी मुस्लिम स्त्री पुरुष हिजाब का समर्थन करते दिखाई दिए । इस हिजाब ने मतदाता की फेशियल आईडी में भी व्यवधान पैदा किया
। परिणाम स्वरूप पोलिंग में हिजाब के प्रयोग ने संप्रदाय विशेष के वोटर्स को सवाल के घेरे में खड़ा कर दिया है । मीडिया के द्वारा वीडियो वायरल किए जा रहे हैं। और मीडिया मानती भी है कि हिजाब की आड़ में फर्जी मतदान भी हुए हैं ।
अब प्रश्न उठता है कि मामला क्या इतना ही है जितना कि दिखाई दे रहा है या कुछ और भी है ।वास्तव में इस प्रश्न की तह तक जाने की आवश्यकता है । उडुपी की ये छः छात्राएं कालेज कैंपस में हिजाब लगाकर आ ही रही थी । कहीं कोई दिक्कत नहीं थी , लेकिन अचानक हिजाब के साथ कक्षा में बैठना और हिजाब के साथ पढ़ने की जिद पर डटना और हिजाब की सनक का इतना सवार होना ,अगर हमें हिजाब नहीं पहने दिया गया तो हम कक्षा का बहिष्कार करेंगे , हम पढ़ाई का बहिष्कार करेंगे। आश्चर्य होता है ऐसी सोच पर ।
हिजाब पहनने की यह सनक है या कोई 'प्रयोग' , आइए देखते हैं । हिजाब कांड की पृष्ठभूमि में' केंपस ऑफ इंडिया 'का हाथ है । यह संदिग्ध पृष्ठभूमि वाला संगठन है । 'पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया ' की यह छात्र शाखा है ।
याद रहे कि पूर्व में सिमी नामक एक कुख्यात छात्र संगठन हुआ करता था जिसने स्कूल , कॉलेज , यूनिवर्सिटीज में अपने पैर मजबूती से पसार लिए थे । यह संगठन मुस्लिम छात्रों को दिग्भ्रमित करने का कार्य किया करता था । इस संगठन ने शिक्षण संस्थाओं को 'हॉट बेड ऑफ द फेनाटिज्म 'बना दिया था । परिणाम स्वरूप सिमी पर प्रतिबंध लगाया गया ।
सिमी पर प्रतिबंध लगने के बाद सिमी का नया अवतार सामने आया । यह नया अवतार है -' पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया 'और इसकी छात्र शाखा है 'केंपस फ्रंट ऑफ इंडिया '।अब हमें अच्छी तरह से समझ जाना चाहिए कि हिजाब के पीछे क्या सोच काम कर रही है ।
ऐसे सार्वजनिक या निजी संस्थान जहां यूनिफोर्मिटी के लिए ड्रेस कोड लागू है वहां हिजाब ,बुर्का या फिर पर्दा करने की जिद , यह कोई सनक नहीं है बल्कि सोचा समझा गया एक' प्रयोग' है , जो कि ऊपर से देखने में कूप मंडूक ,धर्मांधता लगता है और पढ़े लिखे गैर मुस्लिम तबके को परेशान करता है कि मुस्लिम महिलाओं को दोयम दर्जे का बना दिया जाएगा ।
यह उस मुस्लिम तबके की योजना है जो महिलाओं को दोयम दर्जे पर ही रखना चाहते हैं । महिलाओं की उन्नति ,उनका विकास ,इस तबके के लिए खतरे की घंटी है ।यह नहीं चाहते हैं कि मुस्लिम महिलाएं राष्ट्र की मुख्यधारा से जुड़े । ये वह लोग हैं जो तीन तलाक के अंत से घायल हैं । जो मुस्लिम महिलाओं को संतानोत्पत्ति की मशीन समझते हैं । जो मुस्लिम महिलाओं को जाहिल बना कर रखना चाहते हैं। यह वह लोग हैं जो हलाला की पैरवी करते हैं।
विचारणीय प्रश्न है कि कांग्रेस पार्टी की राष्ट्रीय सचिव प्रियंका गांधी वाड्रा , हिजाब की पक्षधर क्यों हैं ? यह हैरान करने वाली बात है कि कांग्रेस समेत कई राजनीतिक दल स्कूल ,कॉलेजों में छात्राओं के हिजाब पहनने की मांग का समर्थन कर रहे हैं । उत्तर शीशे की तरह एकदम साफ है । कांग्रेस ने अति प्रारम्भ से ही मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति अपनाई है ।यह तुष्टिकरण मुसलमानों को लगातार विकास की दौड़ में पछाड़ता रहा है ।
लेकिन कांग्रेस को इनके विकास से कोई लेना देना नहीं है ।कांग्रेस तो इनको सिर्फ वोट बैंक समझती है । इसलिए कांग्रेस ने हमेशा 'कॉमन सिविल कोड 'का भी विरोध किया है । और दूसरे राजनीतिक दलों ने कांग्रेस की इस सोच का अनुकरण किया है एवं मुसलमानों को कूप मंडूक बनाने में ही अपनी जीत एवम् अपना उज्जवल भविष्य देखा ।
तभी प्रियंका गांधी वाड्रा बोलने की सभी सीमाएं लांघ कर यहां तक कह गईं कि यह महिला का अधिकार है । वह चाहे हिजाब पहने , चाहे बिकनी , चाहे घूंघट । कहीं ऐसा तो नहीं है कि प्रियंका गांधी वाड्रा स्कूल , कॉलेज या अन्य सार्वजनिक स्थानों पर बिकनी एवं घूंघट की वकालत कर रही है ।
प्रियंका के अनुसार बिकनी , घूंघट महिला का अधिकार है । तो क्या प्रियंका गांधी वाड्रा बिकनी ,घूंघट में चुनावी रैलियों में जाना पसंद करेंगी । और अगर वह कहती हैं कि हां मैं पहनूंगी यह मेरा मौलिक अधिकार है तो क्या सभ्य समाज उनकी रैलियों में शामिल होगा ? प्रियंका को चाहिए की वही बोले जो स्थान एवं परिस्थिति के अनुकूल हो ।
बहराल समाज को बांटने वाली बात शोभा नहीं देती है । इन राजनैतिक दलों को मतदाता तो मिलते हैं लेकिन राष्ट्र कमजोर होता है ।
लेकिन राष्ट्र की किसको पड़ी है अगर राष्ट्र के प्रति भक्ति होती तो राष्ट्र का यूं बटवारा सन 1947 में कांग्रेस को स्वीकार्य नहीं होता ।
देश फिर से बटवारे की तरफ धकेला जा रहा है । आपस का सदभाव समाप्त किया जा रहा है । स्थान स्थान पर शाहीन बाग बनाए जा रहे हैं । देश को गजवा ए हिंद में बांटने का कार्य यही राजनीतिक दल अपने स्वार्थ के लिए कर रहे हैं । यह रोका जाना चाहिए । अभी भी वक्त है अगर यह संभव हो गया तो हम भूल जाएंगे कि कभी हम भारत माता की संतान थे । हम शांतिप्रिय हैं लेकिन कायर नहीं ।
हिजाब पर कर्नाटक हाईकोर्ट का फैसला प्रतीक्षित है।





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